
श्याम बिन आई है
वृंदावन में होरी पहली बार
जब से श्याम गए हैं मथुरा
गोपियों ने तबसे किया सिंगार नहीं
सूख गई है राधा की कंचन काया
दुख में ऐसी भई श्वेत
जैसे उसकी नसों में रक्त का संचार नहीं
इस बार बसंत की वैसी मादक बयार नहीं
सूने-सूने से हैं इस बार यमुना के तट
यमुना के जल की वैसी धार नहीं
कदंब के उदास वृक्ष पर
कोकिलों की गूंजती कुंजार नहीं
सुमनों में जैसे सुरभि नहीं
पेड़ों के नवल पातों पर भी
इस बार जैसे निखार नहीं
इस बार वृंदावन में
कान्हा की मुरली की तान नहीं
वृंदावन की वीथिकाओं में
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