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स्वांत: सुखाय

इन दिनों मैं अपराध बोध से ग्रस्त नहीं होता,

मैं अपने ही एकांतों में

अपने आह्लाद ढूंढ़ता हूं।

अपने गीत रचता हूं ,

औरों के रचे गीत गाता हूं,

अपनी धीमी और बेसुरी आवाज़ के 

माधुर्य पर मोहित हो जाता हूं।

अपनी समस्त मूर्खताओं पर

लज्जित होनेकी जगह

मंद मंद मुस्कराता हूं।

अपनी सारी इच्छाओं

सारे स्वप्नों को जी लेना चाहता हूं

मैं बड़ी

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