सीता ६'s image

विगत सारी निशा बीती

दुविधाओं में दुश्चिंताओं में

मगर फिर भी आज

भोर इतनी सुनहरी क्यों है


सूर्य की रश्मियां इतनी प्रखर क्यों है

पक्षियों के स्वर इतने मुखर क्यों हैं

आज मलय इतनी सुरभित क्यों हैं

मेरी आशा इतनी बलवती क्यों हैं


मेरा मन आज इतने दिनों के पश्चात

अकस्मात, बिना किसी बात इतना प्रफुल्लित क्यों है


क्यों लग रहें हैं मुझे अशोक वाटिका के

वृक्ष-वृक्ष, पुष्प-पुष्प मुदित-मुदित


मेरे हृदय में आज इतना कम्पन क्यों है

क्यों हो रहा है ये आभास मुझे

आने वाला है शीघ्र ही वो पल

जिसकी इतने दिनों से है आस मुझे


क्यों लग रहा मुझे राम का संदेश

है यहीं कहीं बिल्कुल पास मेरे

जिस पल की प्रतीक्षा थी मुझे

वो आ रहा है धीरे-धीरे पास मेरे


ओह ये क्या गिर तरु ऊपर से

सूर्य की सुनहरी रश्मियों में

हो रहा है आलोकित

लगती है जैसे स्वर्ण मुद्रिका कोई

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