कभी चाहा था's image

मैंने कभी समाना चाहा था

समस्त आकाश अपनी आंखों के स्वप्नों में,

पांवों को देनी चाही थीं अनंत यात्राएं,

अंतर में भरने चाहे थे अंगारे,

अधरों पर देने चाहे थे विद्रोह के स्वर,

हाथों में थामनी चाही थीं

जलती मशालें अंधेरा मिटाने के लिए,

पर समय के साथ सब कुछ बदल गया

आंखों में अनंत आकाश की जगह

रह गये बस दीवारेंऔर छत,

अनंत यात्राओं की जगह

पांव एक ही पथ पर करते हैं

अंतहीन दोहराती यात्राएं ,

अंतर के अंगारे ,

जीवन के चंद थपेड़ों से ही

राख में परिवर्तित हो गये,

हाथों में कभी जलती हुई मशालें थामी ही नहीं,

कभी-कभी अपराधबोध से मुक्ति के लिए

निकला मै भीड़ के साथ

सड़कों पर मोमबत्ती थामे हुए।

   इतने सब के बाद भी

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