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गहरी सी उदासी

सब दिवस एक जैसे न हुए

जैसे चाहा वैसे न हुए।


भोर लाई

आशा की अनगिनत रश्मियां

पर संध्या आते -आते

जाने क्यों घिर आई

गहरी सी उदासी।


न जाने क्यों सांध्य की उदासी

फैल जाती है उन रात के सीनों पर

जब हम अकेले होते हैं

बेहद अकेले.

बस स्वयं के साथ

वो वक्त जब

पलकों की कोरें बेवजह नम हो जाती है

हम चाहते हैं उनके साथ होना

जिनके साथ हम हो सकते हैं

जो नहीं हैं हमारे पास

या उनके साथ

जिनके स

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