ये दौर तो है, दौलत-ताकत-शोहरत वालों का या फ़िर रुसवा इज़्ज़तदारों का
ये दौर तो है,फरेब के रंगीन,चमकते हुए इश्तिहारों का
कौन पूछता है यहां इन दिनों यहां छोटी-छोटी दुकानों को
ये दौर तो है ,सजे हुए, रंगीन बड़े-बड़े बाजा़रो का
कौन देखता है, कौन पूछता है कि नींव कैसी है
ये दौर तो है,जो दिख रही हैं, उन ऊंची-ऊंची मीनारो का
अब यहां ज़िंदा इंसानों की फ़िक्र किसे है ऐ दोस्त
ये दौर तो है ,पत्थर के
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