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बुझे बुझे इंतिज़ार

दिल में दबी कितनी हसरतें

निगाहों में निहां कितने छुपे इकरार ।


पांवों को किन राहों की जुस्तजू

हाथ किन्हें छूने को हैं बेकरार।


कौन से ख्वाब हैं रुठे हुए

किन बातों पे दिल है शर्मसार।

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