![बस्ती's image](/images/post_og.png)
जब बस रहीं थी बस्ती, तो आंख मूंदकर बैठे थे जिम्मेदार लोग
क्या उनको नहीं आ रहा कुछ नजर था।
वही लोग, अपनी पीठ थपथपाते अब कहते फिर रहे हैं कि
उजाड़ दिया तो क्या, नाजायज ये पूरा नगर था।
कोई पूछता है, मैं किससे करुं शिकायत ,पता नहीं
बात इतनी सी है, उजड़ी जो बस्ती उसमें मेरा भी इक छोटा सा घर था।
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