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अपने जैसी परछाईं

हर निगाह में ढूंढ़ी कोई निगाह अपनी खातिर

हर राह पे ढूंढ़ी अपने जैसी कोई परछाईं।

दुनिया की भीड़ में भागते हम भी शामिल थे

क्या जाने क्यूं ,कैसे उभरी अक्सर तन्हाई।

क्या बतलाएं तुझको ऐ दिल, जिनसे

कभी मिले नहीं, क्यूं बेसाख्ता उनकी याद आई।

कौन बताये ये किस्सा, क्यों किसी अपने से बेगा

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