आकलन में's image

देखता था प्रतिबिंब अपना मैं कभी इस सुनहरे दर्पन में

अब देखता नहीं प्रतिबिंब अपना, इस चिटके-चिटके दर्पन में


कभी बसते थे इनमें सपने इंद्रधनुषी,टूटती नहीं थी आस

पर अब कोई स्वप्न जागते नहीं,कोई आस जगती नहीं सूने-सूने नयन में


कभी रहता था यह भरा-भरा,गूंजती थी यहां आवाज़ें कितनी

अब कोई नहीं रहता यहां इस सूने-सूने भवन में


किसे समय यहां, कौन झांकता है किसके अंतर में कि

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