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आहत होना और आहत करना

आजकल हम हर छोटी छोटी बातों से आहत हो जाते हैं ।आहत की इतनी तीव्र प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते हैं की और लोग इसको सुनें और अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त करें ।फिर बहस शुरू हो हर जगह समाचार पत्रों में, टीवी पर, सोशल मीडिया पर, गली ,नुक्कड़ चौराहों पर तब तक जब तक बात बड़ी न हो जाए ।बात कोर्ट कचहरी तक पहुंच जाती हैं।धमकियां , फौजदारी की नौबत आ जाती है कत्ल तक हो जाते हैं।आहत होना और आहत करना हमारा मुख्य चारित्रिक गुण बनता जा रहा है।जब तक हम किसी को आहत कर न लें या किसी बात से आहत हो न लें हमारा खाना नहीं पचता है।उस दिन रात में पान की दुकान पर रमेश जी मिल गये काफी दुखी से लग रहे थे मैंने सहृदयता के नाते पूछ लिया कि क्या बात है आप इतने दुखी क्यों हैं।बस इस बात पर उनका गुबार फट पड़ा ।बोले यार हमारी कालोनी के मेन गेट के बाहर रोड पर एक बड़ा गढ्ढा था नगर निगम वालों ने उसे बिना किसी पूर्व सूचना के रात में भर दिया ।मैंने कहा ये तो खुश होने वाली बात है।रमेश जी बोले यार तुम समझते नहीं वो गढ्ढा हमारी कालोनी की पहचान बन गया था।बाहर से आते हुए तेज रफ्तार गाड़ियों के लिए वो स्पीड ब्रेकर का काम करता था।दूर से कहीं से थके मांदे आते हुए जब हमें कालोनी के प्रव

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