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ख्वाबिदा गांव

याद बोहोत आती है,
अब चलो गाव मेरे यार......

देखना है वो झरना,
जिसमे तैरता कोई अपना...

और वो मंदिर का चौराहा,
जहा शिवजी का है रहना...

..

सुहाना होता था हर सवेरा,
जब मुर्गा बनके घडी देता था बाँघ का सहारा...

काम सुबह था अपना बस एक,
खेलने दौडो लेके दोस्त अनेक...

खाना खाता एक घर पाणी पीता दुसरे,
हर घर अपना और कान्हा मैं सबका खास रे...

कोई देता सेव तो कोई मख्खन देता ताजा,
कभी भी आओ कभी भी जाओ दिल से थे सब राजा...

घुमना आज फिर हर घर है,
बस इसिलिये भाईसा चलो गांव मेरे यार......

..

दोपहर का समय कोई भुलता भला कैसे,
आता था कुल्फीवाला लेके साथ कुल्फी हिमालय जैसे...

माँये लडाती थी कई गप्पे,
बच्चे खेलते चप्पे चप्पे...

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