जुर्म की दास्ताँ's image
411K

जुर्म की दास्ताँ

भीड़तंत्र के द्वारा किसी को भी न्याय दे देना, या बेगुनाहों को अफवाहों के दम पर भीड़ के द्वारा कुचलकर मार डालना, कविता में दर्शाया गया है........



यहां मौत का नाच है,  कटे सरों का ताज है 
जिंदगी सस्ती है, यहां मौत भी हंसती है, 
जान लेने वाले, छीन ले निवालें 
खून के प्याले, यह खून पीने वाले,

जुर्म की आग है, धधकती हुई राख है
बेरोजगारी का वार है, जुर्म एक हथियार है, 
यहां बढ़ती महंगाई है, छुपी हुई सच्चाई है, 
विद्रोह की आग ये किसने लगाई है, 

मैं भविष्य नहीं देखता, बस उसे समझता हूं 
समाज का बदलाव शब्दों से कहता हूं 
सब धोखेबाज है छुपे हुए राज है, 
Read More! Earn More! Learn More!