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चुनावी पत्रकारिता

जमीनी स्तर की पत्रकारिता बिक चुकी है, 
दिख चुकी है पहचान इन पत्रकारों की 
चाटुकार है यह नेताओं के, 
वैनिटी वैन में होगा सफर सुहाना, 
चुनाव तो है सिर्फ एक बहाना, असल में है इन्हें घुमाना

देशव्यापी मुद्दों की बहस में उलझे रहते हैं, 
जमीनी स्तर की दुर्दशा से यह दूर रहते हैं 
जानते हैं सभी को, पर अंजाना सा सवाल पूछते हैं 
उस सवाल में भी यह सिर्फ हालचाल पूछते हैं

गरीब के वोट को यह खरीदते हैं, 
चुनावी रणनीति में अपनी जीत की दावेदारी पक्की करते हैं, 
5 साल बदहाल, गरीब पूछे फिर सवाल 
नेताओं को है यही मलाल, उड़ेगा फिर से रंग लाल 

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