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महिला अस्मिता : एक और सामाजिक क्रांति का सूत्रपात

नारी अस्मिता और मूकदर्शक पुरुष समाज

वैदिक युग में नारियों का बड़ा ही पूजनीय स्थान था. विवाह के अवसर पर वधू को आशीर्वाद देने के लिए ऋग्वेद में जो मंत्र है, उसमें वधू से कहा गया है कि सास, ससुर, देवर और ननद की तुम साम्राज्य बनो. स्त्रियां तो गृहस्वामिनी तो होती ही थी, किंतु उनका कार्यक्षेत्र केवल घरों तक ही सीमित नहीं था. वेद की कितनी ही ऋचाऐं नारियों की रची हुई हैं. नारियों के प्रति अन्याय न हो, वे शोक न करें, न वे उदास होने पाए, यह उपदेश मनुस्मृति ने बार-बार दिया है ;

शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम

न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ॥


जिस कुल में नारी शोक-मग्न रहती है, उस कुल का शीघ्र ही विनाश हो जाता है. जिस कुल में नारियाँ शोकमग्न नहीं रहती, उस कुल की सर्वदा उन्नति होती है.


यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।

जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं. जहां नारियों की पूजा नहीं होती, वहाँ के सारे कर्म व्यर्थ हैं.


वैदिक युग की इस शुभ परंपरा की अनुगूँज हम पुराणों में भी सुनते हैं.

नरं नारी प्रोद्धरति मज्जन्तं भववारिधौ॥

अर्थात संसार समुद्र में डूबते हुए नर का उद्धार नारी करती है.


य: सदार: स विश्वास्य: तस्माद दारा परा गति:॥

जो सब पत्नी कहे वही विश्वसनीय है पति-पत्नी नल की प्रगति होती है


भारतवर्ष के अंतिम सम्राट पृथ्वीराज चौहान की पराजय ( 1192 ई) के उपरांत मुगल शासनकाल के आरंभ होते ही सांस्कृतिक क्षरण का आरंभ बहुत तेज हुआ। इस्लाम के सांस्कृतिक आक्रमणों के परिणामस्वरूप धीरे-धीरे भारत पर मुगलों का साम्राज्य विस्तार होने लगा. मुगल शासनकाल के आरंभ होते ही अनेक कठोर नियम बनाये जाने लगे. लड़कियों का बचपन मे ब्याह होने लगा, शिक्षा से दूर हो गई, पर्दे का चलन थोड़ा-बहुत पहले से भी था, किंतु, यह प्रथा मुगल काल मे कुप्रथा में परिणत हो गई. सती प्रथा, जौहर व अन्य प्रथाओं का प्रादुर्भाव भी मुगल काल से ही आरम्भ हुआ था जो तत्कालीन समय मे नारी-अस्मिता के रक्षार्थ किये जाते थे, जो कालांतर में भयानक कुप्रथा का प्रचलन बन गई.


मुगलकाल में अंकुरित हुई नारी-शोषण की बीज के पेड़ बरगद के समान आज भी हमारे सामने अट्टहास कर अपना फल दे रहे हैं। कुछ प्रथाओं जैसे जौहर, सती-प्रथा, नारी-अशिक्षा व अन्य विभत्स प्रथा को हमारे पूर्व में हुए सामाजिक आंदोलन का संचालन कर हमारे महापुरुषों जैसे राजाराममोहन राय, दयानन्द सरस्वती, अरविंद, मोहनदास करमचंद गांधी, स्वामी विवेकानंद व अन्य कई मनीषियों ने दूर किया.


भारत आजाद हुआ, सभ्यतानोन्मुख समाज की स्थापना के कई प्रयास किये गये। परन्तु दुःख की बात है कि कुप्रथाएं तो समय के साथ विलुप्त हगई लेकिन नारी-शोषण की जो वृत्ति मुगलकाल में थी, वो आज भी हमारे समाज मे जीवंत हैं, जिसे देख कर उन्नत सभ्य समाज हर घण्टे-हर मिनट व्यथित होता रहता है।


नारी अस्मिता को तार-तार कर देने वाली घटनाएं हर मिनट हो रही हैं, जो सभी अपनी आंख को पत्थर करके विभिन्न संचार माध्यमों से देखने, पढ़ने और सुनने को मजबूर हैं, का ब्यौरा देना “मल के समुद्र” से एक बाल्टी मल निकलना होगा.


महिलाओं के शोषण की (प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष) इतनी घटनाएं, वैश्विक आंकड़े को छोड़ भी दें, अपने देश मे हो रही हैं, यदि उसकी सही गिनती की जाय तो, मुझे लगता है कि, गिनती पूरी होते-होते उतनी नई घटनाएं हो चुकी होंगी. महिलाओं के इस दुखद एहसास की तो अवलोकन हीं नही की जा सकती, कितनी शर्मिंदगी होती है एक सभ्य समाज को, प्रिय पाठक, इसकी कल्पना करिएगा.


वैश्विक आंकड़े को

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