आपबीती's image
जल था
तरल था
अविरल था
बहा करता था
सबके   अंतर   में 
अपनों के अपनेपन में

वेदनाओं की ठिठुरती ठंडक ने
बर्फ बना डाला
अचल, नुकीला सा
निर्जन सा पड़ा हुआ
किसी कोने में,
बागों में पत्तों तले,
किसी राही के पैरों तले
जाने-अनजाने किसी
कोमल पैरों को ठोकर लगी

खून बहे, चीख उठी वो
पत्थर हो क्या..!!
जटिल.! कायर..! स्वार्थी.!
सुनता रहा मौन हो
मैं मौन पड़ा सुनता रहा
सबकुछ जो प्रिय नहीं था
आक्रोश थी, दर्द था
शब्दों में कसक थी
पहले से पीड़ा से भरा था
वो भी, हाँ वो भी

काश मेरे भी मौन को
कोई सुन लेता, पढ़ लेता
जीवन मे सब मिलते हैं
पढ़े-लिखे विद्वतजन
पर मेरे सम्मुख आते हीं
अनपढ़ से हो जाते हैं
कोई न पढ़ पता मेरे मौन को
सचमुच अनपढ़.! भावनाशून्य.!
तटस्थ..! उदासीन.!!
क्या सच मे मित्रवत-
मानवीय भावनाएं नहीं.!!

Tag: प्रेम और3 अन्य
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