
2122 1212 22(112)
ग़र इंसां का पता नही होता।
ज़िंदगी भी ज़िया नही होता।
वो सफ़र में मिला नही होता।
दर्द मेरा हरा नही होता।
ज़िंदगी की पतंग भी उड़ती।
डोर से फ़ासला नही होता।
दौलत ही चीज़ ऐसी होती हैं।
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2122 1212 22(112)
ग़र इंसां का पता नही होता।
ज़िंदगी भी ज़िया नही होता।
वो सफ़र में मिला नही होता।
दर्द मेरा हरा नही होता।
ज़िंदगी की पतंग भी उड़ती।
डोर से फ़ासला नही होता।
दौलत ही चीज़ ऐसी होती हैं।