
212 212 212 212
दर्द ने ज़िन्दगी भर हवा दी है क्या
बुझ रही इस शमा को जला दी है क्या
उड़ रही ज़िन्दगी ये हवा की तरह
आग इसमें किसी ने लगा दी है क्या
लब से अपने वो कुछ बोलते क्यों नही
ग़म की गठरी किसी ने थमा दी है क्या
भूल बैठा है खुशियों को अपने यहाँ<
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