
कौतूहल चारों तरफ फैला हुआ है,
रमणीक दृश्य के साथ -साथ -
अंजान वीभत्स रूप भी तो है।
तो कहीं अनसुना सा शोर मचा है,
पूरे ब्रह्माण्ड में गूंज रही है आवाज़,
वो आवाज़ है कमज़ोर - असहाय,
कृषक, मज़दूर,छात्र,दलित - आदिवासी,मजलूमों की।
कभी - कभी दबा दी जाती है आवाज़,
उभर कर आती आवाज़ें,
दब जाती है बंदूक के शोर
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