
हमारे सामने जो दर खुले हैं,
कई आँखों के मंजर से धुले हैं,
हमेशा मुझ को अपना कहने वाले,
कई लोगों की बातों में घुले हैं,
इशारा कर रहे हैं खामशी का,
झगड़ने के
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हमारे सामने जो दर खुले हैं,
कई आँखों के मंजर से धुले हैं,
हमेशा मुझ को अपना कहने वाले,
कई लोगों की बातों में घुले हैं,
इशारा कर रहे हैं खामशी का,
झगड़ने के