
बचपन का ईश्वर
अक्सर बचपन का वो दौर याद आता है जब हम ईश्वर का नाम लेके कोई भी मुराद किया करते थे और वो पूरी ही जाती थी । बचपनका ना कोई धर्म था ना ही कोई दर्शन , थी तो बस हृदय की शुद्धता । ईश्वर हमारे लिए था केवल एक विश्वास जो हमेशा हमारे लिएथा। ना पूजा ,ना नमाज़ ना प्रेयर, थी तो बस एक मन की पुकार और हमेशा वो किसी ना किसी रूप में हमारे साथ होता था।
उम्र बड़ने के साथ धर्म के बड़े हुए ज्ञान ने उस पाक दिल को प्रपंचों से भर दिया और वो शुद्धता जाती रही । ईश्वर को पाने के लिए धर्मकी खोज करने की ज़रूरत नहीं खोजनी होगी वही कोमल शुद्धता जो काल-कवलित हो चुकी है । ईश्वर के हम जिस भी रूप को
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