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बीच के दर्रे

इन मकानों के बीच जितने दर्रे है 

उतना ही दर्रा मैं छोड़ना चाहता हूँ

अपने रिश्तों में 

ताकि न लगे हममें से किसी को भी 

कि खड़े है 

एक दूसरे की बदौलत हम 

ना बरसात-आँधियों में हम एक दूजे का सहारा ढूंढे 

बस हम पास रहे और कभी न आँखे मूंदे 

मेरी ऊष्मा मेरी नाराजगी का का एहसास तो कराए 

पर उसे झुलसाए न  

मेरे धार्मिक ख्याल उसके दरवाजे पर 

दस्तक दे वो उन्हें सुने 

पर अंदर जाते ही 

वो छोड़ जाए

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