विवाद अक्सर वहीं होता है, जहां ज्ञान नहीं अपितु अज्ञान का वास होता है। जहाँ ज्ञान की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है, वहाँ वाद, विवाद या का प्रतिवाद क्या स्थान ? आदमी के हाथों में वर्तमान समय के अलावा कुछ भी नहीं होता। बेहतर तो ये है कि इस अनमोल पूंजी को वाद, प्रतिवाद और विवाद में बर्बाद करने के बजाय अर्थयुक्त संवाद में लगाया जाए, ताकि किसी अर्थपूर्ण निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके। प्रस्तुत है मेरी कविता "वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में" का पंचम भाग।
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वर्तमान से वक्त बचा लो
पंचम भाग
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क्या रखा है वक्त गँवाने
औरों के आख्यान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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अर्धसत्य पर कथ्य क्या हो
वाद और प्रतिवाद कैसा?
तथ्य का अनुमान क्या हो
ज्ञान क्या संवाद कैसा?
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प्राप्त क्या बिन शोध के
बिन बोध के अज्ञान में ?
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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