दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-33's image
101K

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-33

अश्रेयकर लक्ष्य संधान हेतु क्रियाशील हुए व्यक्ति को अगर सहयोगियों का साथ मिल जाता है तब उचित या अनुचित का द्वंद्व क्षीण हो जाता है। अश्वत्थामा दुर्योधन को आगे बताता है कि कृतवर्मा और कृपाचार्य का साथ मिल जाने के कारण उसका मनोबल बढ़ गया और वो पूरे जोश के साथ लक्ष्यसिद्धि हेतु अग्रसर हो चला 

 

कृपाचार्य कृतवर्मा सहचर मुझको फिर क्या होता भय

जिसे प्राप्त हो वरदहस्त शिव का उसकी हीं होती जय।

त्रास नहीं था मन मे किंचित निज तन मन व प्राण का,

पर चिंता एक सता रही पुरुषार्थ त्वरित अभियान का।

 

धर्माधर्म की बात नहीं न्यूनांश ना मुझको दिखता था,

रिपु मुंड के अतिरिक्त ना ध्येय अक्षि में टिकता था।

ना सिंह भांति निश्चित हीं किसी एक श्रृगाल की भाँति,

घात लगा हम किये प्रतीक्षा रात्रिपहर व्याल की भाँति।  

 

कटु सत्य है दिन में लड़कर ना इनको हर सकता था

भला एक हीं अश्वत्थामा युद्ध कहाँ लड़ सकत था?

जब तन्द्रा में सारे थे छिप कर निज अस्त्र उठाया मैंने ,

Tag: Mythology और3 अन्य
Read More! Earn More! Learn More!