ये शहर's image
ये शहर भी बड़ी, विचित्र सी जगह है
खोखली यहाँ जमीं, और ना कोई सतह है।

चल रहा हूँ मैं बरबस, मन को यूहीं दबाए
ओठों के दो सतह में, कुछ दर्द को समाए।

कुछ पस ही खड़े है, कुछ कचरे मे गिरे है
बासी से पुलाव को, खाने को कुछ लड़े है।

वहीं थोड़ी दूर पर, बालू के ढेर पर
एक बच्चा है लेटा, शायद है उसका बेटा
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