
जो ईश को भी पूज्य है,
प्रेम, त्याग में अतुल्य है
है सार भी विस्तार भी
भावों का हर उद्गार भी ।
अव्याख्य और अमूल्य भी
अनन्या है और अकाट्य भी
भले ओढ़े जग क
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जो ईश को भी पूज्य है,
प्रेम, त्याग में अतुल्य है
है सार भी विस्तार भी
भावों का हर उद्गार भी ।
अव्याख्य और अमूल्य भी
अनन्या है और अकाट्य भी
भले ओढ़े जग क