नये साल में धर्म स्थलो के बाहर
खैरात मे बंटते कंबल देखकर
अनायास याद आयी "पूस की रात"
हलकू-मुन्नी की तीन रुपये की बात ।
काश! मैं ये हलकू को बता पाता
उसे ये नयी तदबीर दिखा पाता
पर डरता हुं उसे ठेश पहुंचाने
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खैरात मे बंटते कंबल देखकर
अनायास याद आयी "पूस की रात"
हलकू-मुन्नी की तीन रुपये की बात ।
काश! मैं ये हलकू को बता पाता
उसे ये नयी तदबीर दिखा पाता
पर डरता हुं उसे ठेश पहुंचाने