
दादी का प्रेम अनूठा है जो किसी -किसी को ही मिलता,
जिसे मिले यह प्रेम उसी का अंगना भी फिर खिल उठता,
वो लोरी,कहानी और किस्सों से मेरे मन को बहलाती थीं,
मम्मी और पापा की डांटो से वह अक्सर मुझे बचाती थीं।
दादी का प्रेम------------------------फिर खिल उठता ।1।
वो दिन मुझसे क्यों जुदा हुए नहीं मन कोई बहलाता है,
भावी जीवन को लेकर मेरा मन खुद में ही खो जाता है,
युवापन जीवन का बसंतकाल हरियाली इसमें होती है,
पता नहीं फिर क्यों कभी-कभी मन में नीरसता होती है।
दादी का प्रेम------------------------फिर खिल उठता ।2।
लौटा दो मुझको मेरा अल्हड़पन जो युवापन से अच्छा था,
उस अल्हड़पन से ही ना जाने मेरा कितना गहरा रिश्ता था,
मुझको अपनी गोद उठाकर लोग सीने से लगाया करते थे,
जब भी रोता मैं तब मुझको वो पालने में झुलाया करते थे।
दादी का प्रेम------------------------फिर खिल उठता ।3।