एक सफ़रनामा !

बस का ब्रेक अचानक से दबा ।
सड़क के किनारे 
बस का इंतजार करती 
एक बेहद खूबसूरत अप्सरा को मैंने देखा ।
उसे देखकर मेरी अधूरी नींद पूरी खुल गई ।
बस जैसे ही रुकी ,
एक भीड़ बस के अंदर आने लगी ।
भीड़ के बीच बड़ी मुश्किल से 
उसने बस के अंदर अपना कदम रखा ।
उसके कदम रखने से बेरंग सफर में मानो रंग आने वाला था ।
मेरी खुशनसबी तो देखिए 
वो सीधे मेरे सामने वाली सीट पर आकर बैठ गई ।
जिस सीट में हम बैठे थे वो विंडो सीट थी । 
मेरी तबियत थोड़ी नासाज थी 
इसलिए मैंने खिड़की का कांच बंद कर रखा था ।
उसने खिड़की की कांच खोली
जैसे ही कांच खुली 
हवाओं ने उसके जुल्फों के साथ खेलना शुरू कर दिया ।
उसकी खूबसूरती देखकर मेरे दिल ने मेरी जुबान से कुछ बोलने का हक छीन लिया ।
लहराती जुल्फों के साथ वो इतनी सुंदर लग रही थी के उसका दीदार करने को मेरी आंखे कम पड़ रही थी ।
यकीनन उस हवा ने पिछले जनम में कोई पुण्य का काम किया होगा ।
वरना किसी अप्सरा के जुल्फों से खेलने की किस्मत सब को कहां ? 
चूंकि वो ठीक मेरे सामने बैठी थी 
मैं उससे नज़रे मिलाता,
लेकिन वो अपनी नज़रे फेर लेती ।
और जब मैं अपनी नजर हटाता 
तब वो मुझे देखा करती ।
हमारी आधी सफ़र कुछ इसी तरह गुजरी ।
कभी - कभी गलती से उसके पैरों से मेरा पैर टकराता , 
और कभी - कभी जान बूझकर ।
जैसे जैसे बस आगे बढ़ रही थी 
मंज़िल उतनी ही करीब आ रही थी 
और उससे दूर जाने का समय भी निकट आ रहा था ।
कुछ समय तक हिम्मत जुटाने के बाद
मैने हल्के स्वर में उसका नाम पूछा 

"क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं ?"

वो मुड़कर मेरी ओर देखी।
और जैसे सुनकर भी अनसुना कर दिया हो 
उसने मुझसे कुछ न कहा ।
मुझे लगा वो मुझसे नाराज़ हो गई 
" सुनिए ! 
नहीं बताना तो कोई बात नहीं " 
यह कहकर मैं भी शांत होगया ।
सफ़र यूं ही चलता रहा ।
आगे सफ़र भर न मैने उससे कुछ कहा 
और न उसने मुझसे कोई बात की ।
देखते ही देखते वो लम्हा आगया जब वो मुझसे दूर जाने वाली थी 
मतलब उसकी मंज़िल आ गई ।
बस रुक गई 
जब वो बस से नीचे अपना कदम रखने ही वाली थी 
वो पलटकर मेरी ओर देखी 
और उसने मुस्कुराकर 
आखिरकार अपना नाम बताया !
मुझे कहां मालूम था 
एक घंटे का यह सफ़र 
असलियत में हमारे जिंदगी भर की सफ़र की शुरुवात बनने वाली थी ।
  
                               - Amar's image
102K

एक सफ़रनामा ! बस का ब्रेक अचानक से दबा । सड़क के किनारे बस का इंतजार करती एक बेहद खूबसूरत अप्सरा को मैंने देखा । उसे देखकर मेरी अधूरी नींद पूरी खुल गई । बस जैसे ही रुकी , एक भीड़ बस के अंदर आने लगी । भीड़ के बीच बड़ी मुश्किल से उसने बस के अंदर अपना कदम रखा । उसके कदम रखने से बेरंग सफर में मानो रंग आने वाला था । मेरी खुशनसबी तो देखिए वो सीधे मेरे सामने वाली सीट पर आकर बैठ गई । जिस सीट में हम बैठे थे वो विंडो सीट थी । मेरी तबियत थोड़ी नासाज थी इसलिए मैंने खिड़की का कांच बंद कर रखा था । उसने खिड़की की कांच खोली जैसे ही कांच खुली हवाओं ने उसके जुल्फों के साथ खेलना शुरू कर दिया । उसकी खूबसूरती देखकर मेरे दिल ने मेरी जुबान से कुछ बोलने का हक छीन लिया । लहराती जुल्फों के साथ वो इतनी सुंदर लग रही थी के उसका दीदार करने को मेरी आंखे कम पड़ रही थी । यकीनन उस हवा ने पिछले जनम में कोई पुण्य का काम किया होगा । वरना किसी अप्सरा के जुल्फों से खेलने की किस्मत सब को कहां ? चूंकि वो ठीक मेरे सामने बैठी थी मैं उससे नज़रे मिलाता, लेकिन वो अपनी नज़रे फेर लेती । और जब मैं अपनी नजर हटाता तब वो मुझे देखा करती । हमारी आधी सफ़र कुछ इसी तरह गुजरी । कभी - कभी गलती से उसके पैरों से मेरा पैर टकराता , और कभी - कभी जान बूझकर । जैसे जैसे बस आगे बढ़ रही थी मंज़िल उतनी ही करीब आ रही थी और उससे दूर जाने का समय भी निकट आ रहा था । कुछ समय तक हिम्मत जुटाने के बाद मैने हल्के स्वर में उसका नाम पूछा "क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं ?" वो मुड़कर मेरी ओर देखी। और जैसे सुनकर भी अनसुना कर दिया हो उसने मुझसे कुछ न कहा । मुझे लगा वो मुझसे नाराज़ हो गई " सुनिए ! नहीं बताना तो कोई बात नहीं " यह कहकर मैं भी शांत होगया । सफ़र यूं ही चलता रहा । आगे सफ़र भर न मैने उससे कुछ कहा और न उसने मुझसे कोई बात की । देखते ही देखते वो लम्हा आगया जब वो मुझसे दूर जाने वाली थी मतलब उसकी मंज़िल आ गई । बस रुक गई जब वो बस से नीचे अपना कदम रखने ही वाली थी वो पलटकर मेरी ओर देखी और उसने मुस्कुराकर आखिरकार अपना नाम बताया ! मुझे कहां मालूम था एक घंटे का यह सफ़र असलियत में हमारे जिंदगी भर की सफ़र की शुरुवात बनने वाली थी । - Amar

Read More! Earn More! Learn More!