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अभी जीना है मुझे..!

नींदों से डरी है कि उसे फिर खोना नहीं है,

अंधियारों से लिपट के उसे अब रोना नहीं है,

परत दर परत गमों की चट्टान बना सीने में,

बर्फ़ बन रही है जिसे अब पानी होना नहीं है।


सैलाब तो उसने ख़ुद ही लिखे अपने हिस्से,

बारिश ने कहा था; उसे अब भिगोना नहीं है।

तकदीर लिखन

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