
रोये बहुत तुम इक जान की खातिर,
हम भी उससे शर्मिंदा हैं,
पर सोचा तुमने कभी भी क्या,
क्या क्या खाकर हम जिंदा हैं ।
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रोये बहुत तुम इक जान की खातिर,
हम भी उससे शर्मिंदा हैं,
पर सोचा तुमने कभी भी क्या,
क्या क्या खाकर हम जिंदा हैं ।