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प्रेम - समर्पण

पहली बार जब हम मिले होंगे
न जाने कितने गुलाब खिले होंगे
यूँ तो हर वादा पूरा करना का था एक दूजे का
पर न जाने सफर में कितने वादे टूटे होंगे

सर्वस्य समर्पण किया था हमने
खुद से ज्यादा एक दूजे के लिए जिया था हमने
बो समय बड़ा ही अनमोल था हमारे लिए
लगता है सारा जीवन कुछ क्षणों में जी लिया था हमने

फिर अचानक वक्त का क्रूर बदलाव देखा
सारे वादे पर यूँ मुकरते हुए एक दूजे को
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