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हम बेगानी राह से निकले अपनी राह बनाने को

हम बेगानी राह से निकले अपनी राह बनाने को ,
कितने यहाँ लोग मिले हमको राह दिखाने को।
जो सफर हमने शुरू किया तो संघर्ष हमने अपना लिया,
जिसको हमने  अपना समझा उसी ने मुँह मोड़ लिया।
जो चले हम पथ पर न जाने कितने हमारे साथ चले,
फिर देखकर रास्ते के काँटे न जाने कितने साथ छोड़ चले।
जो चल रहे थे साथ में उनके मन में भी शंका थी,
यही कारण मार्ग में न चल पाने  की बिडम्बना थी।
जिनको हमने जगत विजेता समझा बो मन के द्वारे  हारे निकले,
जिनको हमने हारा समझा बो ही पथ के विजेता निकले।
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