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ना हम कभी सुधरेंगे

जानेवाले चले गये मायूस होकर

आनेवाले आ गये सोच समज़कर 

उंगली पकड़कर गर्दन तक पंहुचे 

सरपर चढ़े जाने - अनजाने में


क्या फर्क पड़ता हैं भाई कौन हैं ?

गोरे हो या काले, इधरके हो या उधरके

तानाशाही, भ्रष्टाचार , महंगाई , बेरोजगारी

जनता बेचारी देखते रहे हमेशा की तरह 


खानेवाले खा गये जी भरके , दिल खोलके

अनपढ़ नासमझ अंधभक्त बेचारे क्या करे ?

फेकी रोटी ,रहमोकरम पर जीत

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