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सहजता की रचना

सहजता की रचना


मन सूखा-सूखा, सच को पिरोए रे,

धूप की परछाई लिए,

बरसातों का पानी लिए,

बिलखती आग के बीच में,

माया, रूप रचाये रे,

चला तो रचयिता लेके रे,

लेकिन रस्ते में कई सारे को पिरोया रे,

मन भटका, तन भटका,

भूखी माया, कई-कई रूप लिए,

संसार को रचाई रे | | 


मैं तो आज जन्मा,

माया जन्मी, जन्म से पहले,

बांधे मुझे,

 कई-कई साल से,

यात्री की पोशाक में,

साफ़ जमीन पे,सामाजिक फसल के लिए,

सांसारिक बीज को,

माया बौना सिखाए रे,

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