
पर्वत सी अड़ जाती
जब आती अपनी हठ पर
कभी अडिग शैलपुत्री हूँ मैं
सूर्य सम ज्वाला तप की
प्रज्वलित मेरी साँसों में
कभी तपस्विनी ब्रह्मचारिणी हूँ मैं
नेत्र चंचल, शीतल शशि मुखड़ा
माँ कहती मैं चाँद का टुकड़ा
कभी चंद्रघंटा मनोहारी हूँ मैं
सुख-समृद्धि, करुणा अपार
मैं ही रचती अपना संसार
कभी कूष्मांडा शुभदायी हूँ मैं
विपदा जब भी आन पड़ी
संतान समक्ष मैं ढाल बनी
कभी स्कंदमाता सी माई हूँ मैं
मात-पिता ईश मेरे
घर-संसार
Read More! Earn More! Learn More!