चलो क्यों न ऐसा करें
हरा रंग तुम ले लो
रंग भगवा मेरा हुआ
लहलहाती हरी घास
घने वन के छाँवदार पेड़
और पेड़ों से लिपटी हठीली बेलें
बारिश में भीगे वह
सौंधे हरे गीले पत्ते
सब तुम्हारे
उगते सूरज की अरुणिमा
ढलती शाम की लालिमा
सर्दी में जलते कोयले की तपस
रात के अँधेरे में
जगमगाते जुगनू
सब मेरे
उस छोटे से गॉँव के किनारे
कल-कल बहती वह नीली नदी
और सिपाही बन रक्षा करता
वह गगनचुम्बी भूरा पर्वत
शिलाओं पर उछलता फिरता
वह नटखट सफ़ेद झरना
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