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“ किताबें “

“ किताबें “


किताबें सोई हुई हैं

अलमारियों मे सुकून से

यूँ देखते हुए ख़्वाब

कोई तो जगा दे उनको


धूल इतनी है उन पर

जैसे लिपटी हुई हैं

दिल से चाहती हैं किताबें

कोई तो छू ले उनको


दिमाग़ की अलमारी

जिस से खुलती है

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