
ज़िंदगी भी ज़िंदगी हो ज़िंदगी में
बंदगी भी बंदगी हो बंदगी में
आग सूरज की बुझा पहले कभी तू
कर्म का अध्याय लिख इक ज़िंदगी में
भर जरा सा तू उजाला आँख में बस
सोच कर चल क़ुछ बड़ा तू ज़िंदगी में
रक्त को रख
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ज़िंदगी भी ज़िंदगी हो ज़िंदगी में
बंदगी भी बंदगी हो बंदगी में
आग सूरज की बुझा पहले कभी तू
कर्म का अध्याय लिख इक ज़िंदगी में
भर जरा सा तू उजाला आँख में बस
सोच कर चल क़ुछ बड़ा तू ज़िंदगी में
रक्त को रख